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रविवार, 25 अक्टूबर 2009

जैविक खेती की मुख्य आवश्यकता"केंचुआ खाद" -2

आज देश में जैविक खेती की आवश्यकता है, पिछले अंक में इस कम्पोस्ट खाद बनाने के आधार बताये गए थे, इस अंक में आगे चलते हैं, सबसे पहले ये जानना जरूरी है की केंचुआ खाद में कौन-कौन से तत्व पाए जाते हैं, तो लीजिये ......
    1. नाइट्रोजन--    १.२५ से २.५ %
    2. फास्फोरस --  ०.७५ से १.६%
    3. पोटाश ----     ०.५   से १.१ %
    4. कैल्सियम--   ३.०   से ४.०%
    5. मैग्निसियम- ३.०   से ४.०
    6. सल्फर        - १३ पी.पी.एम् 
    7. लोहा           -४५ से ५० पी.पी.एम्
    8. जस्ता         -२५ से ५० पी.पी.एम्
    9. ताम्बा        -०४  से ०५ पी.पी.एम्
    10. मैग्नीज      -६०  से ७० पी.पी.एम् 
    11. पी.एच.       -७    से ७.८० 
    12. कार्बन        -१२:१ 
केंचुआ खाद बनाने के लिए आवश्यकताएं 
  1. केंचुओं का भोजन ------------ समस्त गलन शील एवं सडन शील कार्बनिक पदार्थ 
  2. नमी (पानी) .........................४०%
  3. ताप क्रम .............................८ से ३० डिग्री सेल्सिअस (२४ डिग्री सर्वोत्तम )
  4. अँधेरा (छाया).......................किसी भी प्रकार से छाया करना (रौशनी से बचाव)
  5. हवा-----------------------------केंचुवे के कार्य क्षेत्र में हवा का प्रवाह बना रहे .
  6. उचित पी.एच......................... ४.५ से ७.५ पी.एच अच्छा है 
ये तो थी प्रारंभिक जानकारियां, अब हम केंचुओं के लिए ढेर या बेड बनाने की ओर चलते हैं.
  1. छाया दार स्थान पर केंचुवा खाद बेड / ढेर जमीं के उपर या नीचे २-३ फिट गहरा गड्ढा बनाना चाहिए
  2. गड्ढे की दीवारें मजबूत रहें इसके लिए ईंट या लकडी का उपयोग करना चाहिए
  3. केंचुआ खाद बेड २ पीट या ४ पीट माडल आवश्यकता के अनुसार बनाया जा सकता है.
  4. बेड तैयार होने पर अधसड़े केंचुआ के भोजन पदार्थ को डाल कर आवश्यकतानुसार केंचुए डालना चाहिए.
उत्पादन विधि
  1. केंचुवा खाद बनाने के लिए जमीन, छाया, पानी, कार्बनिक पदार्थ, एवं केंचुओं की आवश्यकता होती है
  2. जमीन पर किसी प्रकार के छायादार स्थान, छप्पर या पेड़ पौधे पर कार्बनिक पदार्थ का ढेर तैयार किया जाता है
  3. ढेर की मोती २-३ फिट एवं ऊंचाई १-२ फिट रखना लाभ दायक होता है,अध् सड़े गोबर एवं पत्तियों से तैयार ढेर पर पानी छिड़क कर ठंडा होने पर ही केंचुए डालना चाहिए. लग-भग ४०% नमी बनाये रखने के लिए आवश्यकतानुसार ढेर पर पानी का छिडकाव किया जाना चाहिए.
केंचुआ खाद उत्पादन में सावधानियां 
  1. बेड पर ताजा गोबर नही डालना चाहिए क्योंकि यह गरम होता है,इससे केंचुए मर जाते हैं.
  2. बेड में नमी व छाया, ८ से ३० डिग्री तक तापमान तथा हवा का पर्याप्त प्रवाह बने रहना चाहिए
  3. केंचुओं को मेंढक, सांप, चिडिया, कौवा, छिपकली एवं लाल चींटियों आदि शत्रुओं से बचाना चाहिए.
  4. गोबर अधसडा एवं पर्याप्त नमी युक्त ही प्रयोग में लाना चाहिए.

केंचुआ खाद के लाभ
  1. केंचुआ खाद मृदा में सूक्ष्म जीवाणुओं को सक्रीय कर पोषक तत्त्व पौधों को उपलब्ध करता है.
  2. केंचुआ खाद के प्रयोग से फलों, सब्जियों, एवं अनाजों के स्वाद, आकर, रंग एवं उत्पादन में वृद्धि होती है,
  3. इसके सूक्ष्म जीवाणु, हारमोन एवं ह्युमिक अम्ल मृदा की पी.एच को संतुलित करते हैं.
  4. केंचुआ खाद के प्रयोग से मृदा की जलधारण क्षमता बढ़ जाती है, जिससे सिंचाई की बचत होती है.
  5. केंचुआ खाद के उपयोग से कम लागत में अच्छी गुणवत्ता के फल सब्जी एवं फसलों का उत्पादन होगा.जिससे उपभोक्ता को सस्ता एवं पौष्टिक भोजन उपलब्ध हो सकेगा .
  6. ग्रामीण क्षेत्र में बडे पैमाने पर रोजगार, आय एवं स्वालंबन में वृद्धि होगी.




शुक्रवार, 23 अक्टूबर 2009

जैविक खेती की मुख्य आवश्यकता"केंचुआ खाद"

हम देखते हैं कि बरसात में केंचुए निकलते हैं. ये मल को खाकर मिटटी बनाते हैं. जब हम गाँव में रहते थे थे तो बच्चे बहुत सारे केंचुए पकड़ कर उसे कांटे में लगा कर मत्स्याखेट करते थे, गांवों में केंचुओं को मछली पकड़ने के लिए कांटे में लगा कर चारे के रूप में उपयोग में लिया जाता है, केंचुआ किसानो के लिए मित्र है, इसे "प्रकृति प्रदत्त हलवाहा"भी कहा जाता है. भारत वर्ष में केंचुओं की ५०६ प्रजातियाँ पाई जाती हैं, इनसे वर्मी कम्पोस्ट खाद (केंचुआ खाद) बनता है, इनमे इपीजीइक श्रेणी के केंचुए अपने भोजन, प्रजनन एवं आवासीय विशेषताओं के लिए खाद के लिए उपयोगी मने जाते हैं, इनको सुपर वारं भी कहा जाता है, ये केंचुए मिटटी कम और कार्बनिक पदार्थ ज्यादा खाते हैं, इनका वजन ०.३ से ०.६ ग्राम तक एवं लम्बाई लग-भग ३ इंच होती है.
केंचुआ खाद (वर्मी कम्पोस्ट)
केंचुए कम सड़े कार्बनिक पदार्थों को भोजन के रूप में ग्रहण कर मल -विष्ठा करते हैं उसे वर्मी कास्टिंग कहते हैं, और इनसे प्राप्त इस मल को वर्मी कम्पोस्ट या केंचुआ खाद कहते हैं.
कृषि के उत्पादन वृद्धि में केंचुआ खाद उपयोगी पदार्थ.
  1. कृषि से प्राप्त कूड़ा-कचरा:- अधसड़े पौधों के डंठल, पत्तियां, भूसा, गन्ने की खोई, खरपतवार, फूल, सब्जियों के छिलके,केले के पत्ते, तने, पशुओं के गोबर मूत्र, एवं गोबर गैस का कचरा, सब्जी मंदी का कचरा, रसोई का कूड़ा कचरा आदि से केंचुए की खाद बने जा सकती है.
  2. कृषि उद्योग से प्राप्त कूड़ा-कचरा:- फल प्रसंस्करण इकाई, तेल शोधक कारखाने, चीनी उद्योग, बीज प्रसंस्करण, तेल मीलों एवं नारियल उद्योग आदि के कचरे से भी केंचुआ खाद का निर्माण किया जा सकता है.
  3. गोबर:- ऊपर लिखे पदार्थों को अधसड़े गोबर से मिश्रित कर देने से केंचुआ खाद शीघ्र एवं उत्तम श्रेणी की बनती है, केंचुओं को गोबर एवं पट्टी का मिश्रण अति प्रिय है.
केंचुआ खाद में न डालने योग्य:- पनीर , हड्डी व मांस, तेल, नमक, मिर्च व तेल मसाले, एवं गर्म पदार्थ, इनसे केंचुए मर सकते हैं.
अगले अंक में "केंचुआ खाद" उत्पादन विधि बताई जायेगी.
आज पढिये "रेल दुर्घटना की कहानी-मेरी अपनी जुबानी"
(चित्र-गूगल से साभार)

शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2009

दीप पर्व की शुभकामनाएं



जिनके    घर  में   अँधियारा है
उनको  भी    उजियारा     बाँटें
 
कदम-कदम पर दुःख के पर्वत
आओ   उनको   मिल कर काटें
 
जीवन का  है  लक्ष्य  यही  हम
हर    होठों    पर    लायें  लाली
 
हर   चेहरा   मुस्कान   भरा  हो
हर    आँगन    नाचे   खुशहाली
 
मित्रों मिल जुल कर सब मनाएं
समझो   तब     सच्ची   दीवाली
 
 
"आपको दीपावली की शुभकामनायें" 
 

शनिवार, 10 अक्टूबर 2009

जैविक खेती-आय में वृद्धि-गाँव की समृद्धि

हमारे देश में जैविक खेती का इतिहास लग-भग ५००० साल से भी अधिक पुराना है. यह सजीव जैविक खेती ही थी,जिसने इतने लम्बे समय तक अनवरत अन्न उत्पादन के साथ मिटटी की उर्वरा शक्ति को बनाये रखा जिससे खाद्य सुरक्षा एवं पोषणीय सुरक्षा संभव हो सकती है.
जैविक खादों के गुण-
  1. कम लागत - जैविक खादें व् जैविक कीट  तथा खर-पतवार नियंत्रक रासायनिक उर्वरकों आदि की तुलना में कम खर्च (लग-भग 75 से 85% ) में तैयार  कर सकते हैं,
  2. स्थानीय उपलब्धता-जैविक कृषि उत्पादों की उपलब्धता ग्राम स्तर पर ही हो सकती है, स्थानीय संसाधनों के विवेकपूर्ण  प्रयोग से जैविक खादें आसानी से तैयार की जा सकती हैं,
  3. सुग्राहयता- विषहीन, प्रदुषणमूलक, प्राकृतिक संसाधनों से तैयार की गयी जैविक खादें आसानी से अपनाई जा सकती हैं, जैविक खाद पर्यावरण मित्रवत होती हैं,
  4. उत्पादकता- जैविक खादों से उत्पादित पदार्थों की गुणवत्ता,पौष्टिकता, एवं प्रति उनित उत्पादन क्षमता में निरंतर वृद्धि होती है,
  5. पोषणीयता- जैविक खादों के संतुलित प्रयोग से मृदा की भौतिक, रासायनिक व जैविक संरचना में गुणोत्तर वृद्धि होती है. जैविक उत्पाद अधिक स्वास्थ्य वर्धक होते है,
  6. विविधिकरण- जैविक तकनीक व स्थानीय कृषि तकनीक से समन्वित कृषि का विकास होता है. जैविक खेती और जैव विभिन्नता व विविधिकरण के संतुलित विकास में सहायक होती है,
  7. किसान एवं किसानी मित्रवत- कम लगत, स्थानीय निर्माण व  उपयोगिता के विभिन्न गुण जैविक खादों को किसान के लिए मित्रवत  बनाते हैं. जैविक खाद से मृदा में जलधारण क्षमता, पी.एच,मान, जीवाश्म का अनुपात आदि में वृद्धि होती है.
  8. आय में वृद्धि-गाँव की समृद्धि-जैविक खेती में कम लागत व गुणोत्तर उत्पादन से सकल आय में बढोतरी होती है.
  9. निर्यात में प्रोत्साहन- जैविक कृषि उत्पादों की बिक्री व निर्यात में प्रोत्साहन तो मिलता ही है, कृषि उत्पादों पर बाज़ार में ३०-४०% अधिक मूल्य भी मिलता है.
  10. खरपतवार एवं कीट प्रबंधन- जैविक खादों के नित्य प्रयोग से रासायनिक विधा की खेती-बाडी की तुलना में खरपतवार व कीडों के प्रकोप में कमी आती है. फलत: रासायनिक खरपतवार व कीटनाशी  पर खर्च तथा उनके विभिन्न हानिकारक आयाम जैसे मित्र कीटों में कमी, प्रदुषण, खाद्य श्रृंखला में विष प्रकोप आदि से बचा जा सकता है.
  11. भण्डारण क्षमता- जैविक खादों के प्रयोग से उत्पादित कृषि उत्पादनों में भण्डारण क्षमता तुलनात्मक रूप से लग-भग ३०-४०% अधिक होती है
इस प्रकार जैविक खेती से लाभ ही लाभ हैं, इसलिए हमें जैविक खेती को अपनाना आवश्यक हो गया है. 

शुक्रवार, 2 अक्टूबर 2009

दुर्लभ वन औषधियों का संरक्षण अत्यावश्यक


दोस्तों आज आज २ अक्तूबर है और हमारे भारत के दो महापुरुषों का जन्म दिन है,हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी एवं जय जवान और जय किसान का नारा देने वाले सशक्त नेता लाल बहदुर शास्त्री जी का और आज ही मैंने ब्लॉग पे अपनी साईट शुरू की है,दोनों की सोच एक ही थी कि गावं और कृषि-कृषक की तरक्की से है देश की तरक्की हो सकती है,मैं एक कृषि उद्यानिकी वैज्ञानिक हूँ,सोचा की जब थोडा रिशर्च कार्य आदि से समय मिलेगा तो कुछ समय अपने ब्लॉग पर भी दूंगा तथा उद्यानिकी सम्बन्धी यदि कोई समस्या है तो उसका भी निराकरण करने का पुरजोर प्रयास करूँगा,आज देश में दुर्लभ वन औषधियों की कमी हो रही है,विलुप्त हो रही वन औषधियों को बचाना एक बड़ी चुनौती है,देश के सघन वनों में अभी भी वन औषधियों हर्रा, बहेरा,आंवला, निर्गुन्डी, बबूल,नीम,माजूफल, अकरकरा, पीपर, आदि बहुत सी मोजूद हैं, औद्योगीकरण एवं उत्खनन के कारन इन वन एवं औषधियों का विनाश होता जा रहा है, यदि हमारे में  इनको बचाने के प्रति जागरूकता आती है तो हम अवश्य ही इस दुर्लभ वन औषधियों का संरक्षण कर पाएंगे,इसका एक उपाय इनकी खेती करना  है.आज प्रारम्भ है इसलिए कुछ कम लिख पा रहा हूँ.आगे हार्टिकल्चर हेल्प का कार्यक्रम जारी रहेगा. 

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